समस्या और संगठन
वन्धुगण समस्या तो मानव का स्वाभाविक साथी है। उर्जा रुपांतरण पर स्वचालित, मानव के तन और मन की वृती मे जितना बड़ा अंतर होता है, उतनी ही उसकी समस्या गंभीर होती चली जाती है। इसलिये पहले स्वयं को उर्जावान बनाना होता है। इस उर्जा का सही और वास्तविक उपयोग एक जैसे सोच वाले लोगो को एक मंच पर आना ही होता है।
विचार जब कार्य मे बदलकर परिस्थिति के साथ समायोजन करता है तो हमे कार्य मे आने वाली बाधा के साथ सोचकर चलना परता है और यहीं से हमारे सजीव चिंतन का शुरआत होता है, जो वास्तविक विकाश की आधार को गढ़ता है।
कुछ तथ्यगत वातें
- सरकार को अपनी जरुरत को पुरा करने के लिए नर्सिंग को Community Health Officer बना रही है लेकिन होमियोपैथिक को वारियता नही दे रही है। इसका कारण होमियोपैथिक के अग्रणी लोगो की सार्थक संधर्ष नही करना ही है।
- जिन होमियोपैथिक डॉ को सरकार ने नियुक्त किया उनको वावस्तविक कार्य करने से वंचित होना पर रहा है कारण उसके द्वारा लिखित दवा की उपलब्धता की कमी है। यह कार्य सरकार के उदासिनता के कारण है।
- यदि नियुक्त डॉ अपने पैथि से उपचार के करते है तो समाज मे एक आवश्यकता को पुरा करने वाला तंत्र बनेगा जिसको बनाये रखने का दवाव बनेगा और नयी बहाली का हिसाब भी लगेगा, जो अभी निर्मुल है।
- होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज का कमी को गंभीरता से नही लिया जा रहा है क्योंकि सरकार ने इस पैथि की महत्ता को आंकलन नही कर रही है। सिर्फ व्यक्तिगत विचार तक ही सिमित रखा है।
- होमियोपैथिक चकित्सा के दायरे मे आने वाले रोगी को पृथक करने के व्यस्था की कमी के कारण रोगी को सही उपचार नही मिल रहा है।
- विभिन्न कारणो से समय – समय पर इस बिधा के डॉक्टर को परेशान किया जा रहा है।
- होमीयोपैथिक दवा डॉक्टर को 30 ml में तथा सरकारी दवा वितरण के लिए 100 ml मे रखने की शर्त के कारण दवा की मुल्य मे बृद्धी हो गई है जिससे जन साधारण को समस्या का सामना करना पर रहा है।
उपरोक्त समस्या के समाधान के लिए पहले से जो संगठन कार्यरत है प्रभावी सावित नही हुए है। उनके सार्थकता को नयी दिशा मिलने की उम्मीद बची भी नही है क्योकि उनके संचालक का नजरीया संगठन से मेल नही खाती है।
सेंन्ट्रल होमियोपैथिक ऑर्गेनाइजेशन इन समस्या के समाधान के लिए जरुरी कदम उठायेगी जैसे – जैसे लोगो का साथ मिलेगा कार्य वाधा दुर होता जायेगा।
लेखक एवं प्रेषकः डॉ अमर नाथ साहु