जानवरो का इलाज
प्राकृतिक आवास ः- प्राकुतिक आवास मे रहने वाले जानवर स्वयं को पार्यावरण के अनुकूल ढ़ालने के लिए लगातार प्रयासरत रहते है। वह स्वछंदचारी पबृति के होते है जिसके कारण पार्यावरण के अनुकूल ढलने मे ज्यादा सक्षम होते है। बिमार के स्थिति मे वे स्वयं को प्राकृतिक व्यवहार के साथ सही कर लेते है।
पालुतु पशु ः- कृतिम आवास मे रहने वाले पशु को एक निश्चित व्यवस्था के साथ रहना परता है उसके खाने पिने से लेकरके स्वयं को सही रुप से रहने के लिए वह दुसरों पर निर्भर रहते है। पालतु पशु को पालकों को पशु के उच्च व्यवस्था के साथ रखते हुए उसके सेहत का भी ख्याल रखना होता है। समय – समय पर उसके स्वास्थ्य की देखरेख भी करनी होती है।
बिमारी ः- पालतु पशु मे होने वाले विभिन्न प्रकार के बिमारी की समय पर इलाज होने से पशु स्वास्थ्य रहते है। इसके के लिए पशु पालको को इसका खास ख्याल रखना होता है। पशु के पाचन क्रिया, धाव या मबाद का बनना, संक्रमण के कारण होने वाले विमारी, पेट मे कृमि का बनना, मल – मत्र त्याग करने की बिमारी का होना। मैसम के बदलाव के समय होने वाले बिमारी। प्रशवकाल के समय मे वेिशेषकर सावधानी बरती होती है क्योकि इस समय मे संक्रमण की समस्या बहुत होती है। खाशकरके पालतू पशु को समान्य दिनो की अपेक्षाकृत इस समय खास रुप से उसके आवास की देखभाल की जरुरत होती है।
पालतु पशु का आवास की देखभाल ः- पालतु पशु के आवास को पशु के मल – मुत्र से साफ रखते हुए उसको बैठने और सोने वाले जगह को सुखा भी रखना होता है। जहां पशु रहते है वहां का जगह ज्यादा नमीयुक्त नही होना चाहिए जिससे की उसके संक्रमण की समस्या नही हो। उसके रहने के सहत रुखने तथा त्वचा को हानी पहुचाने वाले नही होने चाहिए। पशु को रहने के लिए दिए गये व्यवस्था को भी साफ करने की जुरुरत होती है।
अनुभव 1 ः- एक शहर मे रहने वाले व्यक्ति अपनी जर्शी गाय के रहने के लिए कुलर के साथ घर की व्यवस्था किये हुए था जिसमे उसके पशु आराम से रहते थे। पशु के रहने वाले जगह की फर्श कड़ी थी जो पशु के पैर के लागातार परने के कारण उसका फर्स पहले की तरह चिकना नही रहा जिसके कारण पशु के मल मुत्र उसमे रुकने लगे जिसकि सफाई तो की जाती लेकिन उसको सही नही कराया गया। कुछ दिन बितने के साथ पशु के शरीर पर बैठने उठने तथा जमीन पर नमी बनी रहने के कारण कुछ भाग छिल गया यानी की त्वचा से बाल हट गये यहां तो ठीक था लेकिन इसी जगह पर मक्खी भी लगातार बैठने लगी जिससे उसमे लालीपन की गहराई बढने लगी। सरसो के तेल लगाये गये कुछ क्रिम भी लगाया गया लेकिन पशु के रहने के सतह को सही नही कराया गया। उसके बैठने के लिए दिये गय समान को भी कभी साफ किया जाता तो कभी वह नमीयुक्त ही बना रहता था। फलतः संक्रमण की समस्या बढने लगी। अब डॉक्टर से दिखाकर इलाज भी कराये गये। यहां तो सही था इसी इस गाय ने अपने बच्चो को जन्म दी आब उसके शरीर मे संक्रमण की समस्या पहले से बढ़ने लगी जिसके कारण इलाज भी ज्यादा व्यवस्था के साथ होने लगा। बिमारी के ठीक होने तथा फिर कुछ नया होने की सिकायत के बाद पुरी प्रक्रिया नियंत्रण से बाहर चली गयी और फिर अफसोस के साथ एक सिख मिली की यदी पशु को बैठने की जगह की नमी का ख्याल रखा होता तो संक्रमण की समस्या से निजात पाया जा सकता था। निदानः पशु के रहने के जगह के नमी का पुरा श्याल रखे पशु के मल – मुत्र को साफ रखने के साथ उसके जगह की नमी को भी कम रखी जाय जिससे की संक्रमण की होने वाली समस्या का कारगर असर हो।
पशु के चारे की देखभालः- पशु को दिये जाने वाले चारे को सही से देखभाल की जरुरत होती है। पशु के भोजन को हरे चारे का रहना जुरुरी होता है जिससे की उसके पाचन की क्रिया को सही रखा जा सके। इसके साथ बरसाते के मौसम के समय हरे चारे मे होने वाले संक्रमण का भा ख्याल रहना जरुरी हो जाता है। बरसात को समय संचित रखे गये चारे की भी अच्छी देखभाल की जुरुरत होती है क्योकि उसमे भी संक्रमण की समस्या रहती है। पशु को चारे मे कुछ खास तरह के खाद्य पदार्थ को दिया जाना चाहिए जिससे की दुध देने वाले पशु का स्वास्थ्य सही रहे। इसके लिए पशु के अनुसार ही चारा का भी अनुपात को समझना होता है।
अनुभव ः- बरसात के समय पशु चारे का अभाव हो जाता है जिससे की पशु की चारे को हरा चारा लाना एक मुश्किल काम हो जाता है या फिर पानी मे चारा भी कभी – कभी डुब जाता है जिससे की चारा का प्रवंंधन कठीन हो जाता है। इस समय पशु को बिना उपचार के दिये गये चारे के कारण पशु को बिमार होते देखा गया है।
जानवरो को कई प्रकार की विमारी होती है जोसको की समय के साथ यदी इलाज किया जाय तो पुर्ण रुप से जानवर सही हो सकते है। जानवर जो खासकर पाले जाते है उसको मवेशी कहते है। यहृ एक पशुपालन व्यवशाय है जो ग्राम्य जीवन के जोवकोउपर्जान का मुल आधार है। परंपरागत रुप से पशुपालन करने वालो को कई तरह की जानकारी होती है। उनकी ये जानकारी उनके अनुभव का भाग होता है। अनुभव के साथ उनका जुड़ाव भी वहुत मायने रखता है। अपनी समस्या की जानकारी के लिए वे एक दुसरे के संपर्क मे रहते है तथा इसका निदान समय से कर लेते है।
जो नये पशुपालक होते है वो आवश्यकता वस पशुपालन को करने के लिए अभ्यस्त होते है। उनको पशुपालन के बारे मे जानकारी मे समय लग सकता है। समान्य व्यवहार से किया जाने वाले कार्य के साथ कुछ दिन तक तो अच्छा चलता है लेकिन समय के साथ कई तरह की परेशानी का सामना करता परता है अंततः वो इस व्यवस्था से दुर हो जाते है। पशुपालन का मुल भाव दुग्ध उत्पादन से है। दुग्ध को व्यवसाय के रुप मे भी कुछ लोग करते है तथा समुचित लाभ उठाकर अपने को खुश और सतुष्ट रखते है।
यहां हम पशुपालन मे होने वाले विमारी और उनका सही इलाज के बारे बात कर रहे है। दग्ध देने वाली मवेशी मे आजकल कई तरह के वदलाव आ गये है। सबके लिए सही तापमान, सही आवास और उसकी सही से सफाई की जरुरत होती है। जो अधिक दुध देने वाली पश है उनको रखने के लिए तापमान को औसतन कम रखा जाता है जिससे को उसको परेशानी ना हो। भारत मे जो पुराने नश्ल की गाये है उसके साथ इस तरह की समस्या नही होती है। वे मवेशी यहा के वातावरण के हिसाव से ढ़ल चुके है लेकिन उसको दुध देने की क्षमता कम होने के कारण अब लोग उसके तरफ से मन मोड़ने लगे है।
दुध के मामले मे भारतीय नश्न की गाये की दुध वहुत अधिक पसंद किया जाता है। जवकि और जो गाये है जो की बाद के नश्ल की है उसके दुध को इस्तेमाल तो किया जाता है पर वारियता के क्रम मे लोग उसे ही उपर रखते है। भारत मे मुख्य रुप से गाय और भैस का पालन किया जाता है। पर अब तो दुसरे तरह के जानवर से भी दुध निकाला जाता है तथा उससे कई तरह के उपयोग किये जाते है।
जानवर मे होने वाले विभिन्न प्रकार की बिमारी मे होमियोपैथिक दवा बहुत कारगर है। इसकी प्रमाणिकता को कई बार जॉचा परखा गया है। लोग अपने मवेशी मे होने वाली विमारी से जब सही इलाज पाते है तो उसका मनोवल तो बढ़ता ही है साथ डॉ का विश्वास भी बढ़ जाता है। मवेशी मे होने वाली समान्य विमारी मे कुछ प्रमुख है जिसकी हम चर्चा यहां कर रहे है।
- मवेशी का लंगड़ानाः- चोट लगने, उँच निच मे पैर परने, या गिरने से होने वाली विमारी मे प्रमुख है मवेशी का सही से नही चल पाना इसके लिए होमियोपैथिक दवा की कुछ प्रमाणिक खुराके देने से मवेशि समय से ठीक हो जाते है जिससे की उसके स्वासथ्य पर बुड़ा प्रभाव नही परता है।
- दुध कम देनः मवेशी वच्चे देने के कुछ दिन तक तो दुध सही दती है उसके बाद दुध कम हो जाता है या फिर शुरु से ही दुध कम आने लगता है जवकि इसके दुध देने की प्रक्रिया पहले अच्छी थी। इसके लिए भी होमियोपैथिक की कुछ प्रमाणिक दवा देने के वाद गाय को दुध की मात्रा सही हो जाती है। दुध देने की मात्रा गाय के नश्ल पर भी निर्भर करती है। दवा देने के बाद उसके कम दुध दने की जो कारण होता है उसको दवा दुध करके दुध को सही कर देती है।
- थन मे गाठ बननाः मवेशी को दुध निकालते समय कई तरह की सावधानी वरतनी चाहिए जिससे की उसके थन मे किसी तरह का संक्रमण ना हो। जिससे की कोई परेशानी का समाना करना परे। कभी-कभी मवेशी के थन मे गाठ बन जाती है जो पहले तो ठीक रहती है तथा दुध निकलता रहता है लेकिन समय के सात गाठ बढ़ने लगती है और समस्या जटील हो जाती है। मवेशी के थन से खुन का आना, दुध पिला का आना आदि की समस्या होती है। इसका इलाज भी आसानी से हो जाती है इसके लिए समय के साथ इलाज जरुरी है इससे पहले की ये विमारी काफी गंभीर रुप धारण कर ले और मवेशी के लिए बहुत मुश्किल कर दे। होमियोपैथिक दवा की कुछ प्रमाणिक दवा देने के बाद इसको ठीक किया जा सकता है। हमने इस तरह के कई विमारी को सही किया है।
- धाव का होनाः मवेशी के लिए जो आवास होता है उसका हवादार होना जरुरी है जिससे की मवेशी की स्वास्थ्य पर खराब असर नही परे। मवेशी के आवास के फर्स को कुछ लोग नरम नही करके कुछ कड़ी कर देते है या फिर फर्श को ही कड़ा बना देते है। जिससे की मवेशी को बेठने और उठने के दौराण कई बार कुछ भाग छील जाता है यानी की वहां से उसके शरीर के उपरी भाग का हिस्सा हट जाता है और सफेद दिखने लगता है जो धिरे-घिरे संक्रमण का कारण बनता है। कुछ पंछी भी इसको कुरेद देते है और यह संक्रमण का एक स्त्रोत बन जाता है जो समय के सात मवाद बनने लगाता है। जिससे की परेशान बढ़ने लगती है। पशु विमार हो जाते है। इसका ईलाज भी सही समय से होने से ये सही हो जाते है। धाव के सुखाने वाली दवा का उपयोग करते हुए इससे निजात पाया जा सकता है। होमियोपैथिक की कुछ प्रमाणिक दवा खिलाकर इसको ठीक किया जा सकता है।
- पतला पैखाना होनाः मवेशी को चारा देते समय कई तरह की सावधानी बरतनी परती है खास करके बरसात के समय जो चारा हम प्रयोग मे लाते है वह संक्रमत हो सकता है क्योकि इस समय बहुत से जीवाण सक्रिय हो जाते है तथा सक्रमण का कारण बनते है। इसके लिए पशु चारा को यदी खेत या खुली मैदान से लाते है तो पहले अच्छी तरह से साफ कर ले फिर अपने पशु को इसको खान के लिए दे। वासी चारा जो की पानी मे भिगा हुआ हो पशु को अगले दिन नही दे ये उसके लिए सक्रमण का कारण बन सकता है। यदि संक्रमण हो जाये तो होमोयोपैथिक की कुछ प्रमाणिक दवा देकरके मवेशी को स्वस्थ्य किया जा सकता है।
लेखक एवं प्रेषकः डॉ अमर नाथ साहु
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