Discipline

अनुशासन

 यह वह युक्ती है जिसके सहारे  एकात्म बिचार को शिखर पर ले जाया जाता है। मार्ग मे बाधा का आना एक प्राकृतिक संधर्ष की बिधा है और उसका निवारण होना हमारी क्रियाशिलता प्रमाण है लेकिन यह तय मानक के आधार  पर ही होना चाहिए। यदि कार्य प्रवाह मे कोई बैधानिक समस्या आ खड़ी हो जाय जिसके लिए सुधार जरुरी  हो तो इसके प्रारुप को प्रवलता से मिटिंग मे उठाकर सबके सामन रखा जाना चाहिए और ततपश्चात इसका उपयुक्त समाधान निकाला जाना चाहिए।

  किसी व्यक्ति विषेश के द्वारा किया गया सार्थक प्रयास यदी समग्र चिंतन का हिस्सा नही है तो यह विवाद का कारण बन सकता है। इसलिए स्वयं  को अनुशासित रहते हुए दुसरे को इसका एहसास कराकर एक मजबुत बंधन का निर्माण जुरुरी है।

   डॉ बन्धु हमलोगों ने एक अऩुशसन समिति के गठन का भी निर्णय लिया है जो अनुशासन संबंधी शिकायत का उपयुक्त निवारण करेंगे, जिससे की सबमे एकरुपता बनी रहे।

कुछ तथ्यगत बातेंः-

  • विषेश कार्य संपादन के लिए नियुक्त किये गये व्यक्ति के अनुरुप ही कार्य का संचालन होना चाहिए, यदि कोई समस्या है तो इसके निवारण के लिए नियुक्त व्यक्ति से परामर्श जरुरी होता है जिससे कि लक्ष्य की मार्ग का सही से अनुसरण हो।
  • आपस मे उलझने से अच्छा है कि यदि कार्य संपादन मे कोई विसंगति आता है तो इसकी शिकायत सम्बन्धित व्यक्ति से करते हुए निवारण के लिए समय का समय दिया जाय।
  • अपने बिचार को रखते समय इस बात का ख्याल रखे कि अपसी उलझाव न हो जरुरत हो तो लिखित रुप से अपने बिचार दिया जाय जिससे की एकात्म बिचार को बनाते समय इसका ख्याल रखा जाय।
  • किसी बिषय पर उलझाव होने से अनुसाशन समिति द्वारा दिया गया स्पष्टिकरण को ततकाल से प्रभावी माना जायेगा। जिसको कि अध्यक्ष के पास चुनौति दिया जा सकता है जिसका निवारण संचालन समिति की बैठक मे बहुमत के आधार पर किया जायेगा।
  • बन्धु आपका बियार संगठन के लिए महत्वपुर्ण है इसलिए अपने बिचार को आप संगठन के पटल पर रखे न कि इसके पुर्णतः रुप से नही लागु होने पर आप नाराज होकर कोई गलत कदम उठा लें। आपका साथ हमारे लिए महत्पुर्ण है।
  • आपके द्वारा संगठन के प्रति दिया गया किसी दुसरे को बिवादिय व्यान पर अनुसाशन समिति कारण बताओ नोटिश जारी कर सकती है। जिसका जबाव आपको निर्धारित किये गये समय मे देना जरुरी होगा जो कम से कम 24 धंटा का या इससे अधिक हो सकता है।
  • आपका आचरण उतकृष्ट होना जरुरी है आपके शब्द हमेशा मर्यादित होना चाहिए जिससे की किसी की व्यक्तिगत आक्षेप न हो। यदि कोई भुलबस गलती होती है तो आप तुरंत इसका पश्चाताप करे और सामनेवाले को चाहिए की उसके साथ औ प्यर से पेश आय और सामान्यजस्य की स्थिति को बिगरने न दे।
  • यदि संगठन से कोई जानकारी चाहिए तो आपको लिखित रुप से देना होगा जिसका जवाव दिया जायोग आपको धौर्य धारण करना चाहिए, अनाव्श्यक ब्यध्र होना क्रोध को जन्म देगा जो विवाद को सुचित करता है।

लेखक एवं प्रेषकः- अमर नाथ साहु