प्रोस्टेट ग्रंथी का बढ़ना


इस विमारी के कारण बार बार पेसाव लगना, पेशाव मे जलन का होना, सोने के बाद देर रात को निंद का खुल जाना, डराबना स्वपान का आना। पेसाव की थैली भरी रहती है लेकिन पेसाव धीरी-धीरे होने के कारण पेढ़ू मे तनाव महसुस होता है। मुख्य रुप से पासाव के धार मे कमी लगातार बनी रहने के कारण प्रस्टेट ग्रथी के बढ़ना को माना जाता है।
उम्र बढने के साथ होने वाली यह समस्या पुरुषो के लिए बडा परेशानी का कारण बनता है। पचास के उम्र से आसपास होने वाली इस समस्या को यदी सही तरह से ख्याल रखा जाय तो इसे बचा जा सकता है। यहां इस तरह की समस्या होने के बाद और पहले के सभी पहलू का बर्णन किया जा रहा है जिससे को लोगो को समय रहते इसका समाधान निकाल लिया जाय जिससे कि समस्या से निजात मिले।
पचास के उम्र के आसपस यह बिमारी देखने को मिलती है। पुरुषो मे होने वाली इस विमारी मे पेशाव की धार कम हो जाती है। इसमे पेशाव की थैली के निचे जहां से पेसाव की नली निकलती है वहां पर प्रोस्टेट ग्रंथी होती है। इस ग्रंथी का कार्य प्रोस्टेटीक स्त्राव करना होता है जो कोमोत्तजना के समय हल्की तरल पदार्थ के रुप मे बाहर निकलता है. जो योनी की त्वचा को मुलायम बनाये रखती है। इसमे कामबासना के समय होने वाली धर्षन को सही करने मे मदद मिलती है।
इस उम्र मे पुरुष जनन्द्रिया को साफ – सफाई रखने की जरुरत होती है। साथ ही कमवासना के समय से पहले तथा बाद भी सही तरह से साफ-सफाई की जुरुरत होती है। जिससे की संक्रमण को रोका जा सके। पुरुष तथा महिलाओ मे गुप्तांग मे कई तरह की बिमारी होती है जिसको की समय के साथ सही तरह से इलाज की जरुरत है जिससे की समस्या को जड़ से ठीक किया जाय। छोटी छोटी समस्या को रोकने से इस बिमारी को रोका जा सकता है।
समान्यतया बार-बार पुरुष के लिंग पर होने वाले संक्रमण के कारण इस बिमारी को होने की संभावना बढ़ जाती है। संक्रमण जो समय के साथ ठीत तो हो जाते है पर बार-बार होने के कारण ये बिमारी अंदर मे दवी रहती है। जो बिमारी अंदर के तरफ अपनी जटीलता को बना देता है। संक्रमण मे लिंग के अग्र भाग के उपर लाल-लाल दाना बनना एवं जलन होना। लिंग के अग्र भाग के पिछे के तरफ उभरे हुए भाग पर गाठ का बनना, छाला बनना और जलन तथा दर्द करना। पेसाव मे बार – बार जलन होना। लिंग के अग्र भाग को बंद करने वाले उपरी परत के अंदर मे लाल – लाल दान होना, इसमे तनाव का बनना जिससे की इसको पिछे की तरफ करने मे परेशानी होती है इसको फिमोसिस कहते है। काम वासना के समय मे जलन का होना इत्यादि कारणो के बार – बार होने से इस बिमारी की संभावना बढ़ जाती है।
प्रेस्टेट ग्रंथी बार – बार संक्रमण के कारण इसके आंतरिक भाग मे सुशुप्त परे सेल फिर से सक्रिय हो जाते है और इसमे बृद्दी होने लगती है जिसे बेनाईन हाईपरप्लेसिया कहते है। इसके ज्यादा बढ़ जाने के कारण पेसाव का पुरी तरह से आना बंद हो सकता है। जिसका ईलाज सर्जरी ही होता है। सर्जरी भी कई प्रकार के होते है जो परेशानी के हिसाव से तय किया जाता है। यदि पेसाव बंद हो जाये तो ततकाल कैथेटर लगाकरके पेसाव को जारी किया जाता है। यदि इलाज सही से होतो अंदर की होने वाली प्रक्रिया को रोका जा सकता है जिससे की परेशानी पुरी तरह से ठीक हो जाती है। समय के साथ परेशानी को दुर करने मे ही भलाई है।
लगातार दवाई को खाने की जरुरत होती है क्योकि आंतकरिक प्रक्रिया मे बदलव को रोखने के लिए दवााई को बीमारी को ठीक होने तक लगातार खाना चाहिेए। बिमारी के हिसाव से दवा के समय को निर्धारित करना होता है। जांच के लिए अल्ट्रासाउण्ड की जरुरत होती है जो ग्रथी के बढ़ने की प्रक्रिया को सही तरह से माप के बाद बतला देता है। जिससे की बिमारी को पहचानना आसान हो जाता है। फिर इसका इलाज होमियोपेथिक विधी से किया जा सकता है।
दवा को समय पर लेने की जरुरत है जिससे की बिमारी को समय से ठीक किया जा सके। इस बिमारी के साथ और भी कई तरह के विमाकी होते है जैसे वार्ट यानी अहीला का लगातार बनना। ऐढ़ी को फटना। खाना पाचन की प्र्क्रिया का सही नही रहना। कब्ज का बना रहना इत्यादि की समस्या भी समय के साथ होती है जिसको की इलाज से सही किया जा सकता है।
लेखक एवं प्रेषकः डॉ अमर नाथ साहु
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