किसी संगठन का ताकत उसका मांग पत्र होता है, जिससे की लोगो का जुड़ाव उससे होता है। संगठनात्मक बिकास संहयोग करने वाले व्यक्ति के कला कौशल पर निर्भर करता है। एक-दुसरे तक पहुँच बनाकर विश्वास की एक कड़ी बनाई जाती है, जो एकता के सुत्र को बांधता है। भगवान कृष्ण अर्जुन को समझाते हुए कहते है, कि यदि कोई समाजिक कार्य मे अपना हित मिला दोगा तो उसका ओ कार्य कलंकित हो जायेगा। यानी समाजिक कार्य को करने वाले को अपना हित नही देखना चाहिए क्योकि यदि समाज का कल्याण होगा तो उसका भी कल्याण होगा क्योकि वह समाज मे है। समाज उसमे नही है।
लोग अपने व्यक्तिगत हित से ऊपर नही उठ पाते है। इसके कई कारण है। लेकिन देर सवेर उसे उसी मुकाम पर पहुँचना होता है, जहां से समाज का कल्याण संभव हो। यदि वह एक स्वस्थ्य समाज का प्रतिनिधित्व करना चाहता है, तो उसको समाज के सामने एक दृष्टान्त रखना होगा। हम आयुष के प्रदर्शन की बात करने निकले थे। बन्धुगण बैसे तो संगठन मे बाद बिवाद होता ही है, होना भी चाहीये। इससे संगठन के अंदर समरसता आती है। लेकिन यदि आपस मे ही खिंचतान होने लगे तो मालुम होता है, अभी संगठन में और प्रयास की जरुरत है। 27 सितम्वर को आयुष का प्रदर्शन हुआ जिसमे मुझे भी भाग लेने का मौका मिला। वहां की आवोहवा का हालत देखकर लगा की अभी और प्रयास की जरुरत है।
मांगने वाले के अंदर ही डर दिखा, की यदि मांग लम्वा रखा, तो सरकार उसकी मांग पुरी नही करेगा। इसलिए टुकड़ो मे मांगा जाय। लेकिन मेरा मानना था, की यदि मांगने ही निकले है, तो कंजुसी क्यो, खुलकर मांगो। देनेवाले के ऊपर ये छोड़ दो की वो क्या करेगा। देनेवाले के सामने एक पुरी व्यवस्था होती है, जिसके साथ वह वर्तमान का समानजस्य स्थापित करता है। यदि मांग वास्तविक होता है, तो स्थायित्व को प्राप्त होता है। लेकिन यदि यह व्यवस्था का भााग नही होता है, तो समय के साथ बंद भी हो जाता है। इसलिए पुरी व्यवस्था के लिए लड़ा जाय। जिससे इस पैथी से जुड़े सारे लोगो का लाभ हो। सबकी बात सुनकर आगे निकलने मे शक्ति का जो एहसास होता है, वह संगठित करने वाले को एक सुखद एहसास देता है।
लोकतंत्र मे जनता प्रधान होती है। इसलिये आपका लोगो से जुड़ाव जितना अधिक होगा आपकी महत्ता उतनी अधिक होगी। यदि आप वास्तविकता के साथ सहयोगात्मक व्यवहार करते है, तो आपके बिचारधारा से अलग लोगो का भी साथ मिलेगा, भलेही उनका उसमे स्वर्थ हो या न हो। क्योकि वह समाज मे है, और यदि यह समाजिक कार्य है, तो किसी न किसी रुप मे वह प्रभावित जरुर होगा।
अवलोकन और प्रयास तो चलता रहता है। हमने एक अवलोकन किया, अपनो तक बात पहुँचाई लेकिन कहां तक कामयाव हुआ आपको इस लेख से पता लग जायेगा। लेकिन आज भी प्रयास जारी है। आगे भी हम आपको अपने अनुभव का साथी बनायेगे। जय हिन्द।
नोटःः- आप अपने बिचार यहां रख सकते है, हम उसपर यथाशिघ्र बिचार करेंगे। यदि यह अच्छा लगे तो इस लेख के लिंक को अपनो तक जरुर पहुँचावे। जिससे की एकता की गाठ मजबुत हो सके।
लेखक एवं प्रेषकः- डॉ अमर नाथ साहु
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