होमियोपैथिक चिकित्सा पद्दति चिकित्सा बिज्ञान की एक बहुत बड़ी देन है जो आज के उन्नत मानव समाज के मानसिक बिसाद से उत्पन्न बिमारी को दुर करने मे सहायक है। जिसके जनक डॉ फ्राइडरिक सैम्यूल हेनिमैन ने इसे जनमानस के लिए उपलब्ध कराये जो आज भी अनवरत चकित्सिये सेवा के रुप मे जारी है। यह पैथी ने अपने बिकाश के क्रम मे सफलता के कई किर्तिमान गढ़े लेकिन बिज्ञान की नई-ऩई खोज ने इसके बिकाश की सीमा को सिमित कर दिया। यह पैथी 2019 के कोरोना काल मे भी अपनी अहम भुमीका निभाया जिसकी सराहना सर्वत्र की जा रही है।
डॉ फ्राइडरिक सैम्यूल हैनिमैन ने 19 वी शताव्दी के मध्य मे अपने अध्ययन से ये सावित किये की दवा के अति सुक्ष्म मात्रा से शरीर की शिथिल परे जैविक प्रणाली को जागृत करते हुए रोग निदान किया जा सकता है। इसके लिए उन्होने अल्कोहल को अपना बेस बनाये और शरीर के अंदर सक्रिय रोग के जैसे कृतिम लक्षण को होमियोपैथिक दवा के जरीये पैदा किया। इसके कारण हमारा शरीर इस नये लक्षण को बिमारी मानकर इसके प्रतिरोध की प्रक्रिया शुरु की जो पहले से व्यवस्थित रोग के निदान के लिए कारगर सावित हुआ। चुकी दवा की मात्रा अति सुक्ष्म होने के कारण इसके प्रभाव को नियंत्रित करना आसान था जिसके कारण इलाज की यह प्राकृतिक व्यवस्था को सामाज मे अच्छा स्थान मिला।
हमारा शरीर एक जटील जैविक प्रक्रिया के साथ संचालित है जो प्राकृतिक वातावरण के अनुकुल अपने को व्यवस्थित रखते हुए सतत परिवर्तन की दिशा मे गतिशिल रहता है। इस शरीर मे प्राकृतिक रुप से रक्षा प्रणाली सक्रिय रहता है जो बाहरी घातक जुवाण तथा बिषाणु या अन्य के द्वारा किये गये आक्रमण को नष्ट करते हुए शरीर को निरोग रखता है। लेकिन कई कारणो से जब हमारा शरीर के रक्षा प्रणाली जागृत नही हो पाता है तो यह बिमारी के रुप मे शरीर मे हमारे कष्ट का कारण बनता है। डॉ हेनीमैन के दावरा खोजी गई विधी मे शरीर को आणविक रुप से प्रभावित करने वाली दवा से दुर रखा गया क्योकि माना गया की हमारा शरीर ही स्वयं को नरोग रखने के लिए प्रयाप्त है बस अंदर बैठा रोग हमारी जैविक सुरक्षा तंत्र को सक्रिय नही करने का अनोखा तरीका लगा कर हमे कष्ट दे रहा है। जिसको जागृत करने के लिए रोग के समान लक्षण पैदा करने वाले दुसरे पदार्थ के शुक्ष्णतम भाग के द्वारा शरीरिक जैविक प्रणाली को जागृत करते हुए निरोग किया गया।
बन्धुगण बिज्ञान ने भले ही बहुत तरक्की कर ली है लेकिन आज भी वह मानव के जैविक तंत्र को समझने मे लगा हुआ है आज भी ऐसे कई पहलू है जिसपर अध्ययन चल रहा है। समय के साथ बदलते परिवेश के अनुरुप बिज्ञान की चुनैती भी बढ़ती जा रही है। लेकिन हमारे शरीर के जैविक प्रक्रिया हमेशा वातावरण के साथ नविनतम बना रहता है। हमे होमियोपैथिक बिधी से रोग के प्रती निष्क्रिय सुरक्षा तंत्र को जगाना होता है वह आपना कार्य स्वयं कर लेता है जिससे किसी प्रकार की बिपरित प्रभाव की गुनजाईस नही रहती है। जैसे – जैसे होमियोपैथिक की आवरधारणा समाज के जटिल तंत्र को एक कारगर सुरक्षा व्यवस्था दे रहा है वैसे ही इसके विश्वास को गति मिलने लगी है।
हेनिमैन जयंती मानव समाज को उध्वेलित करती है कि वह स्वयं को स्वस्थ्य रहने के लिए प्रकृतिक चिकित्सा पद्धति होमियोपैथिक को आपनावे तथा जीवन के वास्तविक आनन्द के साथ जीवन निर्वाह करे। अन्य सारी पैथी हमारे जैविक तंत्र के जटिल प्रक्रिय को सुक्ष्म स्तर पर जाकर पुर्ण रुप से सार्थक ईलाज करने मे सक्षम नही है। कई तरह के दुष्परिणाम समय के साथ देखने को मिलता रहता है। इसलिए आज हम उन्हे याद करते हुए नवीन उल्लासित जीवन को अपनाने के प्रति कृत संकल्पित होते है और इस पैथी के प्रति अपनी पुर्ण श्रद्धा व्यक्त करते है।
जय होमियोपैथी।
लेखक एवं प्रेषकः डॉ अमर नाथ साहु

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