गतिरोध
संगठन को आग्रणी रखने मे कई तरह के गतिरोध उत्पन्न होता है इसमे प्रमुख है
- कार्य उत्साह का नही होना
किसी कार्य को करने के लिए कार्य उत्साह का होना जरुरी होता है, यह वह बीज है जो व्यक्ति को आंतरिक सवलता प्रदान करता है। बाधा से लड़ने के लिए जरुरी क्षमता प्रदान करता है। एकात्म भाव बनाने मे अहम भुमिका निभाता है। इसके लिए समय – समय पर संदेश का आदान प्रदान होना जरुरी होता है, जिससे की लोगो की उत्सुकता बनी रहे।
- सक्रिय सदस्यो की कमी
समय के साथ व्यक्ति की प्राथमिकता भी बदल जाती है जिससे की सक्रिय सदस्यों की कमी होने लगती है। इसके लिए जरुरी होता है कि लोगो मे बिश्वास के बीज बोयें जाय और कार्य योजना को गती देते हुए नये लगों की सक्रिया को सराहकर आगे बढाया जाय।
- सहयोगी की उपेक्षा
कुछ लोग अति उत्साहित होते है तो कुछ लोग निरुत्साहित होते है तथा कुछ लोग हर परिस्थिती मे एक समान बने रहते है। यह देखने को मिलता है कि एक दुसरे को निचा दिखाने के भाव को यदी दृढ़ता से रोका नही गया तो सहयोग की अनिक्षा का बिज अंकुरित होने लगता है। इसलिए सभी सदस्य बन्धु को अपनी बात अनुशासन के वंधन मे ही रखने चाहिए जिससे की सहयोग की भावना का सुत्रपात होता रहे। सब एक दुसरे का सम्मान करें।
- अंतर्विरोध
वैसे तो बिरोध प्रकृति प्रदत गुण है। इसके सहारे ही कार्य योजना मे निखार आता है। लेकिन बिरोध का आधार कार्य योजना तक ही सिमित रहे तो अच्छा है। इसे व्यक्तिगत भाव की स्तर पे लेकर यदि कार्य संपादन हुआ तो अंतर्विरोध को पनपते देर नही लगता है। सबको एक दुसरे के प्रति सम्मान के भाव रखने जरुरी है।
- नये सदस्यो की कमी
नयो लोगों को जुड़ना जरूरी होता है इससे कार्य संपादन को गति मिलती है। बिचार की नविनता बनी रहती है। एक संयुक्त उपक्रम का बिस्तार होता है जो बिभिन्न आयामें मे अपना योगदान देकर कार्य योजना को सशक्त बनाता है।
- कार्य योजना का अभाव
समय के साथ कार्य योजना का बनना जरुरी होता है जिससे की संगठन की तरलता बनी रहे। संगठन की प्रसंगिकता भी इसी मे समझ आती है। यह जरुरी नही की बिरोध की अवधरना के सहारे आगे बढ़े हमलोग एक साथ मिलकर कुछ नये साहसिक कार्य को करने की प्रेरक कार्य के प्रती लोगो का उत्साह वर्धक कार्यक्रम भी चला सकते है।
- समय और धन के योगदान मे कमी।
यह संगठन का प्राण वायु होता है जिसके सहारे संगठन की धारा की प्रवलता बनी रहती है। इसमे उत्साही लोगो को आगे लाने की जरुरत होती है। उसको सम्मानित हुआ मानकर बहुत सारे लोग इस कार्य मे अपना उत्साह जगाते है और आगे निकलने की प्रेरणा पाकर गैरवांवित होते है।
लेखक एवं प्रेषकः डॉ अमर नाथ साहु